Conventional V/S Non Conventional Machines in Hindi
Conventional V/S Non Conventional Machines
1 तो सब से पहले हम कन्वेंशनल मशीन की बात करते है तो उसमे सिम्पल मिकेनिसम वाला एक मशीन होता है. जिस में एक वर्कपीस होता है और एक सिम्पल टूल होता है. और उसको चलने क लिए ह्यूमन एफ्फोर्ट्स भी बहुत लगाना पड़ता है साथ ही साथ टाइम भी बहुत ख़राब होता है.
1 जो की उसके सामने नॉन कन्वेंशनल मशीन की बात करे तो उसमे क्रिटिकल मिकेनिसम होता है. जिस में भी एक वर्कपीस होता है और साथ में बहुत सरे टूल होते है जिसमे वह एक एक करके या सब साथ में भी काम कर सकते है. और उसको चलने के लिए बहुत ही कम ह्यूमन एफ्फोर्ट्स लगाना पड़ता है और एक से ज्यादा टूल एक साथ काम कर सकने कि वजह से टाइम भी कम लगता है.
2 कन्वशनल मशीन में कोई क्रिटिकल और एडवांस इलेक्ट्रॉनिक इंस्ट्रूमेंट्स का युस नहीं होता है.
2 नॉन कन्वे शनल मशीन में बहुत सारे क्रिटिकल, एडवांस एलेक्ट्रॉनिक इंस्ट्रूमेंट और कम्प्यूटर न्यूमेरिक कण्ट्रोल सिस्टम को लगाया जाता है.
3 कन्वेंशनल मशीन ह्यूमन के द्वारा डायरेक्ट ऑपरेट किया जाता है. तो इस की वजह से वेल ट्रैन ऑपरेटर की जरुरत पड़ती है.
3 नॉन कन्वेंशनल मशीन में PLC और कॉम्पटर न्यूमेरिक कण्ट्रोल सिस्टम लगी होने के कारन उसमे HMI मतलब ह्यूमन मशीन इंटरफेस लगा होता है जिसमे सिम्पली एक डिस्प्ले और कुछ बटन्स होते है जिससे हम मशीन को चला सकते है और मशीन में क्या चल रहा है उसको HMI में दी गई डिस्प्ले में देख सकते है. और इसको प्रोग्राम करने क लिए वेळ ट्रैन प्रोग्रामर की जरुरत पड़ती है बाद में इसे कोई भी नार्मल ऑपरेटर चला सकता है.
4 कन्वेंशनल मशीन में सिंपल टूल्स इस्तेमाल होते है और उसको सेटअप करना भी इजी होता है. लेकिन उसके कारन उसकी क़्वालिटी थोड़ी काम रहैति हे. और यह टूल की कीमत भी कम होती है.
4 नॉन कन्वेंशनल मशीन में स्पेशल पर्पस टूलिंग होते है जिसको सेटअप करना थोड़ा टिपिकल होता हे। लेकिन जिस के कारन हमें अछि कोलिटी मिलती है. लेकिन यह टूल्स की कीमत बहुत ज्यादा होती है.
5 कन्वशनल मशीन का नॉइज़ पोलुशन नॉन कन्वेंशनल मशीन से ज्यादा है.
5 नॉन कन्वेंशनल मशीन का नॉइज़ पोलुशन कन्वशनल मशीन से कम है.
6 कन्वशनल मशीन में ओपेरटर को ट्रेनिंग देना थोड़ा मुश्किल है क्योकि इसमें मास्टरी एक्सपीरियंस से आती है.
6 नॉन कन्वेंशनल मशीन का प्रोगरामिंग होता है और वह कंप्यूटर में भी हो सकता है तो वह कोई बी इंजीनियर जल्दी सिख सकत्या है और बादमे प्रोग्रामिंग कर सकता है.
7 कन्वशनल मशीन की कीमत काम होती है और उस की वजह से उसकी ऑपरेशनल कॉस्ट और मैंटेनस कॉस्ट भी बहुत काम होती है. तो उसकी वजह से हमें लौ कॉस्ट प्रोडशन मिलती है. लेकिन क्वान्टीटी और क्वॉलिटी नॉन कन्वशनल मशीन से काम होती है.
7 नॉन कन्वेंशनल मशीन की कीमत बहोत ज्यादा होती है उस की वजह से उसकी ऑपरेशनल कॉस्ट भी भी बहुत बढ़ जाती है तो उसकी वजह से हमें हाई कॉस्ट प्रोडशन मिलती है. लेकिन क्वान्टीटी और क्वॉलिटी कन्वशनल मशीन से बहोत ज्यादा होती है.
8 कन्वशनल मशीन के मेन्टेन्स के लिए हमें उसके सरे स्पेयर पार्ट्स इजी ली मिल जाते है या तो उसे हम खुद भी बना सकते है.
8 नॉन कन्वेंशनल मशीन के मेंटेनन्स के लिए हमें कोई सर्विस इंजीनियर की जरुरत पड़ती है और अगर कोई स्पेयर पार्ट की जरुरत पड़ती है तो हमें वह जल्दी से नै मिलता है और हम नॉर्मली उसे बना भी नै सकते है.
9 कन्वेंशनल मशीन के एक्साम्पल है. लेथ मशीन, सेपिंग मशीन, ड्रिलिंग मशीन,बोरिंग मशीन , मिलिंग मशीन, होब्बिंग मशीन, और ऐसे ही बहोत सारे,
9 नॉन कन्वशनल मशीन के एक्साम्पल हे. सीएनसी टर्निंग सेण्टर, वर्टीकल मशीनिंग सेण्टर, हॉरिजॉन्टल मशीनिंग सेण्टर, इलेक्ट्रिकल डिस्चार्ज मशीन, वायर कट, प्लास्मा मशीन, लेज़र कट मशीन और ऐसे ही बहोत सारे.
Nice article , i am also a mechanical engineering, article is really good and informative
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